Wednesday, May 16, 2012

ब्लॉग जगत का चुनाव आयोग फ़र्ज़ी है ?


परिकल्पना के मास्टरमाइंड ने महेंद्र श्रीवास्तव जी और एक महिला ब्लॉगर की टिप्पणियों पर ऐतराज़ जताते हुए पूछा है कि 

हमारा कहना तो यह है कि बच्चा बूढ़ा और जवान सबकुछ एक साथ है यह। जो जैसा वह वैसा ही लिख रहा है। कुछ तो काल कवलित भी हो चुके हैं। ब्लॉग जगत बच्चा होता तो चुनाव और धंधे का जुगाड़ कैसे कर लेता ?

जहां चुनाव होता है वहां चुनाव आयोग ज़रूर होता है। जब ब्लॉग जगत में सरकार ही नहीं है तो फिर चुनाव आयोग किसने बना दिया ?

यह एक फ़र्ज़ी चुनाव आयोग है।
किसी ने नामांकन नहीं भरा , किसी ने ज़मानत की राशि नहीं भरी और न ही वोटर लिस्ट बनी और आयोग ने कुछ नाम चुनकर आदेश दे दिया कि 
‘तुम चुनाव में खड़े हो, लड़ो चुनाव‘
तुम्हारा नाम होगा और अपना धंधा चलेगा।
जिसे 100 टिप्पणियां मिलती हैं उसे 4 वोट मिलने मुश्किल हो रहे हैं।
इससे ब्लॉगर का नाम हो रहा है या वह बदनाम हो रहा है ?,
कहना मुश्किल है।

जब चुनाव आयोग ही फ़र्ज़ी है तो उसके नतीजे भी अवैध और अमान्य ही होंगे। वैसे भी चुनाव के ज़रिये जिस तरह के लोग सरकार में आते हैं, उनसे पिंड छुड़ाने के लिए बार बार चुनाव कराने पड़ते हैं और यहां सरकार नहीं बनाई जा रही है बल्कि एक दशक (?) में ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन करना है।
साहित्य का आकलन साहित्य जगत कैसे करता है ?
क्या वह कोई चुनाव आयोजित करता है ?
नहीं , बिल्कुल नहीं।
साहित्यकारों या ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन चुनाव द्वारा पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं होता लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत में किया जा रहा है।
एक तो ब्लॉग जगत पर मध्यावधि चुनाव थोप दिया और पता चला कि बिल्कुल बेवजह और पूछ रहे हैं कि ब्लॉग जगत बच्चा है क्या ?
बच्चा यहां कोई नहीं है, हरेक बालिग़ भी है समझदार भी।
हरेक जानता है कि चुनाव में पैसे वाला ही जीतता है। वही इस चुनाव में नज़र आ रहा है।
सूची में सबसे ऊपर समीर लाल जी का नाम नज़र आ रहा है।
समीर लाल जी का योगदान अपनी जगह है और हम भी उन्हें सम्मान की नज़र से देखते हैं लेकिन क्या यह कहना सही होगा कि हिंदी ब्लॉगिंग के एक दशक में सबसे ज़्यादा योगदान उन्होंने किया है ?

ऐसा तो स्वयं समीर लाल जी भी नहीं कह सकते।
मज़े की बात यह है कि नतीजा शुरू से ही ग़लत आ रहा है और जो ग़लती बता रहे हैं उनकी बोलती बंद की जा रही है।
रवीन्द्र प्रभात जी लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं लेकिन ख़ुद उनका लोकतंत्र में कितना विश्वास है ?
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने जब उनके विरोध में ख़बर प्रकाशित की और उनकी पोस्ट पर
कौन बनेगा इस दशक का हिन्दी चिट्ठाकार ? ) एक कमेंट के साथ उसका लिंक दिया तो उसे उन्होंने तुरंत ही डिलीट कर दिया।
क्या विरोध के स्वर को मिटा देना ही लोकतंत्र है ?
...और उपन्यास का शीर्षक रखते हैं ‘ताकि बचा रहे लोकतंत्र‘ ?
ऐसे कैसे बचेगा लोकतंत्र  ???

‘ब्लॉग की ख़बरें‘ देता है बिल्कुल निष्पक्ष और सच्ची ख़बरें,
जिससे उजागर होती है ब्लॉगिंग को धंधेबाज़ी में बदलने वालों की हक़ीक़त

इसी क्रम में महेन्द्र श्रीवास्तव जी की ताज़ा टिप्पणियां और रवीन्द्र प्रभात जी का जवाब देखिए,


महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
मैं रवींद्र जी का सम्मान करता हूं और मेरी आदत बेवजह की बहस में पड़ने की भी नहीं है। लेकिन मैं जो समझता हूं, उसे व्यक्त जरूर करता हूं। अच्छा होता कि आप सबके नाम लेकर टिप्पणी करते, लेकिन मैं नहीं जानता कि भाषा की कमजोरी की वजह से आपने ऐसा किया या दूसरों को छोटा दिखाने के लिए जानबूझ कर किया।
चर्चित महिला का मतलब मुझे आप समझा दीजिएगा... जहां तक मेरी समझ और जानकारी है ये एक निगेटिव शब्द है, और कम से कम किसी महिला के नाम के आगे लगाने के पहले सोचना चाहिए।
खैर मुझे आपने चुनाव में लोकतात्रिक व्यवस्था से अज्ञानी होना बताया है। मैं आपको विनम्रता से चुनाव और लोकतंत्र की बात समझा दूं। पहले तो चुनाव में नामांकन उम्मीदवार को खुद करना होता है, ये किसी के पिता जी नहीं करते। अच्छा होता कि यहां भी आपने लोगों से नामांकन आमंत्रित किया होता। आपने कुछ के नाम शामिल करके और एक अन्य कालम बना दिया कि कोई भी यहां आ जाए। पहला दोष तो ये है। अब सभी ब्लागर नामांकित हो गए। शायद आप जानते होंगे कि आप को उतने वोट हासिल नहीं हो सकते तो आपने यहीं ऐलान कर दिया कि मुझे वोट ना दें। बहुत सारे लोग हो सकते है, जो आपके इस चुनावी व्यवस्था को ठीक नहीं समझ रहे हों, पर उनके नाम के आगे आप दो तीन वोट लिखकर माखौल उड़ा रहे हैं।
दूसरी बात चुनाव में बोगस वोट को रोकने का आपके पास कोई व्यवस्था नहीं है। लोग एक बोगस मेल आईडी और बोगस ब्लाग बनाए और वोट करते रहे।
जिस तरह से आपका सिस्टम है, अगर कोई खाली आदमी है तो उस ब्लाग को विजेता बना सकता है, जो ब्लाग आज खुला हो और उस पर कोई पोस्ट भी ना हो।
बहरहाल मैने तो सिर्फ अपनी बात रखी थी, आपको इतनी तकलीफ होगी, मैने सोचा नहीं था। वरना हम रोजमर्रा के जीवन में तमाम चीजों की अनदेखी करते हैं, इसे भी कर देते।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
महेंद्र जी,
मैं आभारी हूँ जो आप मुझे सम्मान की नज़रों से देखते हैं . चर्चित महिला नहीं "चर्चित महिला ब्लोगर" कहा गया है पोस्ट में . आप बहुत बाद में आएं हैं इस ब्लॉग जगत में इसलिए शायद आपको यह नहीं पता कि यह संवोधन अदा जी के लिए है . उन्हें विगत वर्ष "वर्ष की महिला ब्लोगर" का सम्मान प्राप्त हुआ था और वे लगातार चर्चा मे रही थी। क्या चर्चित कहना गलत है ? कोई जरूरी नहीं कि किसी का नाम लेकर ही अपनी बात कही जाए .
रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
कोई टीका-टिप्पणी करके आनंद उठाता है तो कोई किसी विषय पर चलती बहस में अपने तर्कों से झंडे गाड़ देता है... तो कभी बहुत संवेदनात्मक सामाजिक मुद्दों पर गरमा-गरमी भी हो जाती है ....सबका आनंद अलग-अलग है और यही ब्लॉग जगत की विशेषता भी है । टी वी चैनल वाले एस एम एस के माध्यम से वोट मांगते है ....कोई हमें बताएगा की उसकी विश्वसनीयता क्या है ?
महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
जी तो ऐसे कहिए ना कि आप मनोरंजक चैनलों से प्रभावित हैं और चैनल आपका रोड माडल है। टीवी चैनल मे रहते हुए मैं इस वोटिंग सिस्टम का विरोधी हूं।
आपको पता होगा कि जितने भी रियलिटि शो है, सभी में लोग प्रीपेड फोन से फर्जी वोटिंग करते हैं। लेकिन वहां एक से ज्यादा वोट करने की मनाही नहीं होती है। वहां वोटिंग की लाइन खुलते ही आपको अपने प्रिय कलाकार के लिए वोटिंग करनी होती है और ताकतवर ( ताकत यानि पैसा) जीत जाता है।

भाई रवींद्र जी हम जो एसएमएस मंगाते हैं वो एक व्यावसायिक उद्देश्य है। पता नहीं आपको पता है या नहीं वैसे प्रति एसएमस 30 या 40 पैसे की होती है, पर प्रतियोगिता में शामिल होने वाले एसएमएस की कीमत छह रुपये होती है। जिसमें चैनल और टेलीफोन कंपनी आधी आधी रकम बांटते हैं।

अगर आप इसी व्यवस्था से प्रभावित होकर ऐसा चुनाव करा रहे हैं तब तो कोई बात नहीं यहां भी पैसे वाले अधिक संसाधनों वाले जीत जाएं।
रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
महेंद्र जी, हमारे सामने जो तकनीकी है हम उसी मे बेहतर करने की कोशिश कर सकते हैं । या फिर नयी तकनीकी के आने का इंतज़ार करें। व्यवस्था मे सुधार धीरे-धीरे होता है एकबारगी नहीं। मैं चाहता तो विभिन्न वर्गों से जैसे 41 चिट्ठाकारों का चयन मैंने निर्णायक मण्डल बनाकर किया इसका भी कर देता ।मैं एस एम एस जैसी व्यवस्था से प्रभावित होकर चुनाव नहीं करा रहा,बल्कि वोटिंग कराने का अभिप्राय यह है कि वास्तविक वस्तुस्थिति से अवगत हुआ जा सके ।
महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
वैसे मैं जानता हूं कि हम बेवजह की बहस कर रहे हैं...मेरी तकलीफ तो सिर्फ ये थी कि आपने मेरे बारे में टिप्पणी की कि.........

एक ब्लॉगर ने तो वोट के लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर ही आपत्ति दर्ज कर दी, जबकि पूरी दुनिया चुनाव की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को श्रेष्ठ व्यवस्था की संज्ञा देती है । .......

इसलिए मैने आपको बताने की कोशिश की, लोकतंत्र में चुनाव में उम्मीदवार को खुद नामांकन करना होता है, अब ये क्या बात है कि आपने कुछ लोगों के साथ मिलकर नाम तय कर दिए और जब नाम तय किए गए तो अन्य का कालम क्यों। मसला साफ है कि आपने जिस टीम के साथ ये नाम तय किए उस पर आपको भी भरोसा नहीं था। .. अगर अन्य का कालम है तो फिर नाम क्यों ?

सब लोग अपने पसंदीदा का नाम लिख कर वोट कर देते।

अब आप सीमित संसाधनों की बात कर रहे हैं। जबकि पहले आप मेरे लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था के ज्ञान पर उंगली उठा रहे थे।


खैर मैं अपनी बातों को बस यहीं पर विराम देता हूं। मेरा आशय किसी के विरोध या समर्थन करना नहीं है।
रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
आखिरकार आपने अपनी नाराजगी का सबब बता ही दिया, खैर देर से ही सही जानकारी तो हुयी कि आप मुझसे नाराज़ क्यों हैं ? मुझे खुशी है कि आपके सुझाव से भविष्य मे मेरा मार्गदर्शन होगा । 

8 comments:

रविकर said...

करें यहाँ गम गलत सब, सच्ची दुनिया छोड़ |
ढोंगी दुर्जन स्वार्थी, देखे वहाँ करोड़ |

देखे वहाँ करोड़, होड़ अब यहाँ देखता |
तुलसी स्वांत-सुखाय, यज्ञ लहलहा देखता |

पुरस्कार का लोभ, क्षोभ ना होता भैया |
रविकर जो पा जाय, बजाऊं द्वार बधैया ||

श्यामल सुमन said...

सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं

लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहीं
प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं

बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं

मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं

धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं

रचना में ना दम आती विज्ञापन से
ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं

उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं

खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/

कनिष्क कश्यप said...

पता नहीं क्या गंध सी मचा रखी है. न सम्मान देने वाले का कोई वजूद, न लेने वाले की बिसात. कछुए की ग्रैंड रेस में .. स्नेल अवार्ड देगा. इन सब से बाहर निकलो यार .. !!
जिसको सम्मान पाने का गरूर हो, वह इस साम्मान के बदौलत रेलवे किराये में छूट पाए और जिसे सम्मान न मिलने का अफसोस हो .. वह अपना सम्मान बना अपने को ही दे दे . न कोई जानता और न कोई पूछता.

कनिष्क कश्यप said...

और हाँ ., एक बात बताना भूल गया .. राष्ट्रीय ब्लॉगर का सम्मान भी बचा है .. कोई बनाये और कोई ले ले .. हे हे ! मेरा काम था बताना !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कुछ न करने से कुछ करना बेहतर है।

devendra gautam said...

बांध तारीफों के पुल
रेत को दरिया न कर.

अनूप शुक्ल said...

क्या जलवेदार बातें कहीं हैं जी! वाह!

हरकीरत ' हीर' said...

चुनाव का पता तो हनें भी न था .....
हमें तो तब पता चला जब एक ब्लोगर मित्र ने वोट के लिए लिंक भेजा ..

‘ब्लॉग की ख़बरें‘

1- क्या है ब्लॉगर्स मीट वीकली ?
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2- किसने की हैं कौन करेगा उनसे मोहब्बत हम से ज़्यादा ?
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3- क्या है प्यार का आवश्यक उपकरण ?
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4- एक दूसरे के अपराध क्षमा करो
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5- इंसान का परिचय Introduction
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6- दर्शनों की रचना से पूर्व मूल धर्म
http://kuranved.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

7- क्या भारतीय नारी भी नहीं भटक गई है ?
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8- बेवफा छोड़ के जाता है चला जा
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9- इस्लाम और पर्यावरण: एक झलक
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10- दुआ की ताक़त The spiritual power
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16- मोबाइल : प्यार का आवश्यक उपकरण Mobile
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17- आपकी तस्वीर कहीं पॉर्न वेबसाइट पे तो नहीं है?
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18- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम अब तक लागू नहीं
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19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है?
इसका श्रेय भारत के ज़ियोना चाना को जाता है। मिजोरम के निवासी 64 वर्षीय जियोना चाना का परिवार 180 सदस्यों का है। उन्होंने 39 शादियाँ की हैं। इनके 94 बच्चे हैं, 14 पुत्रवधुएं और 33 नाती हैं। जियोना के पिता ने 50 शादियाँ की थीं। उसके घर में 100 से ज्यादा कमरे है और हर रोज भोजन में 30 मुर्गियाँ खर्च होती हैं।
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20 - ब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
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21- इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ
http://www.sahityapremisangh.com/2011/07/blog-post_3678.html

22- इसलाम में आर्थिक व्यवस्था के मार्गदर्शक सिद्धांत
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23- मेरी बिटिया सदफ स्कूल क्लास प्रतिनिधि का चुनाव जीती
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