एक सांचे में ढाल रखा था.
हमने सबको संभाल रखा था.
एक सिक्का उछाल रखा था.
और अपना सवाल रखा था.
सबको हैरत में डाल रखा था.
उसने ऐसा कमाल रखा था.
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
कुछ बलाओं को पाल रखा था.
हर किसी पर निगाह थी उसकी
उसने सबका ख़याल रखा था.
गीत के बोल ही नदारत थे
सुर सजाये थे, ताल रखा था.
उसके क़दमों में लडखडाहट थी
उसके घर में बवाल रखा था.
उसकी दहलीज़ की रवायत थी
हमने सर पर रुमाल रखा था.
साथ तुम ही निभा नहीं पाए
हमने रिश्ता बहाल रखा था.
-देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: हमने रिश्ता बहाल रखा था:
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरा है
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक ...
1 comments:
अछि प्रेना देती हुई पोस्ट है.
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